कवि के द्वारा ____
यहां मेरे द्वारा प्रस्तुत कुछ चुनिंदा कविताएं आपके सामने इस वेबसाइट की मदद
से प्रस्तुत है। आप पढ़ कर अपनी राय मुझे बताए। मैं चाहता हूं कि आप मेरी
कविताओं को पढ़े और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं और अगर आपको इसमें कोई
भी कमी लगे तो आप अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स की मदद से मुझ तक
पहुंचाएं।
✍ जिज्ञाशु कुमार गुप्ता
तू इतनी जल्दी हार नहीं सकता है
कब फूल बसंत में मुरझता है,
कब लहरों से नोका घबराता है,
अंत में जीत अथक प्रयास पाता है,
तू इतनी जल्दी हार नहीं सकता है।
नन्ही चिटी बड़े बड़े दाने लेकर चलती है,
छोटी चिड़िया तिनका-तिनका कर घोसला सजाती है,
मेहनत और लगन से तो पत्थर भी पिघल सकता है,
तू इतनी जल्दी हार नहीं सकता है।
मैंने पतझर में भी फूल खिलते देखा है,
बड़ी बड़ी शक्ति को घुटने पर चलते देखा है,
तू अपने इरादे को फौलाद कर,
तलवार के जोर पर सूर्य उदय किया जा सकता है,
तू इतनी जल्दी हार नहीं सकता है।
तेरा देवता इतना कुरुर नहीं है,
समय के हाथ में सुल नहीं है,
तेरी गलतियों से भी इस जहान में
इतिहास रचा जा सकता है,
तू इतनी जल्दी हार नहीं सकता है।
जाग उठ और अपने रब को याद कर,
एक भयंकर गर्जना से अपने आप को पुकार कर,
तू है गुलाब तुम्हें कटों पर ही खिलना होगा,
खुद टूट कर खुशबू बिखेरना होगा,
मुश्किल है पर इन रास्तों पर चलना होगा,
तू इस सृष्टि में मात नहीं खा सकता है,
तू इतनी जल्दी हार नहीं सकता है।
होगा इस बार कुछ ऐसा रण
बिछा है चक्र-व्यू कुछ ऐसा,
हुआ ना हो पहले जैसे।
आ डटा है कुरूक्षेत्र में अभिमन्यु,
कापेगा उसके वाणों से गगन,
होगा इस बार कुछ ऐसा रण।
महासमर में मृत्यु का अभिनंदन होगा,
काल रूप धरे गुरुनंदन होगा,
तान ले ग्रंडिब अर्जुन और चक्र धरें सुद्रसंधारी
इस बार ना रोके से रुकेगा कर्ण,
होगा इस बार कुछ ऐसा रण।
तरकस छोड़ कर बाण आर पार चलेगें,
निज धर्म का भी टुक दो ध्यन धरेगें,
करूगा इस समर का जब अंत
सब उचारेगें जय जय अंगेश कर्ण,
होगा इस बार कुछ ऐसा रण।
इस बार ना चक्र महि में धसेगा,
ना ही गोविन्द का भी बस चलेगा,
पुन्य सारे कवच और कुंडल होगे
टक टकी बंधे देखते रह जायेगे सुर जन,
होगा इस बार कुछ ऐसा रण।
महायज्ञ में समर्पित है सम्पूर्ण तन,
अंगूठा ही नहीं बल्कि पूरा वदन,
हो चाहे अब परिणाम कुछ भी
बिना विचारे करुगा मै ग्रजन,
होगा इस बार कुछ ऐसा रण।
बहुत हुआ आंख मिचौली,
खेले बहुत आशुओं से होली,
नकारात्मकता निकाल बाहर सब
जीत ही ठान लिया है मेरा मन,
होगा इस बार कुछ ऐसा रण।
पत्थर बन कर रहना होगा
जीवन के हर मोड़ पर,
ठोकर तुम्हे सहना होगा,
अगर नहीं चाहते हो टूटना,
तो पत्थर बन कर रहना होगा।
जीवन में हार चखने पे,
अपनों से ही ताने सुनना होगा,
अगर नहीं चाहते घुट कर मरना,
तो पत्थर बन कर रहना होगा।
तुम्हें जग की सुन कर बात सारी,
अपना पथ खुद चुनना होगा,
जीवन के उतार चढ़ाव में,
पत्थर बन कर रहना होगा।
तुम्हें मंदिर में ईश्वर बनना है,
तो मार हथौड़े का सहना होगा,
अगर टूट गए एक बारी,
तो उम्र भर मिट्टी बन कर रहना होगा।
यारों उससे तौबा करना
वाणी में मधुशाला हो,
हाथों में जिसके प्याला हो,
यारों उस से तौबा करना,
जिसका भीतर का मन काला हो।
सुनो उसकी यही रीत है,
जाग भर से उसको प्रीत है,
यारों उससे तौबा करना,
जो देती तुम्हें भीख है।
गिड़गिड़ाने से जो मिले प्यार,
उसको दो तुम अस्वीकार,
यारों उससे तौबा करना,
उसको दो जूते हजार।
मन के काले तन के गोरे,
होते है यह मतलबी सारे,
यारों उससे तौबा करना,
कहना जा जिले किसी और के सहारे।
जान कर तुम्हें किसी और के साथ,
जदी ना हो दिल पर घात,
यारों उससे तौबा करना,
वो खुश हैं किसी और के साथ।
दो मुहे यह सांप है सारे,
जिनके फन में बीस धारे,
यारों उससे तौबा करना,
इसका इलाज ना पास हमारे।
देकर दिल में सहारा,
आखिर निकाला सारा दोष हमारा,
यारों उससे तौबा करना,
मैं भी हूं एक साकी का मारा।
यह कहानी केबल नहीं मेरा है,
इसने हर किसी के साथ यही खेला है,
यारों उससे तौबा करना,
जो आज तेरा, वो बिता कल मेरा है।
वक़्त था जब उसकी जुल्फों में सिमट जाता था,
उसकी बोली पर ही गजलों की बहर गाता था,
यारों उससे तौबा करना,
वो तो सब के साथ यू ही वक़्त बिताता था।
उसको कहां फर्क मेरी थी,
वो पगली कंकर को हीरा कहती थी,
यारों उससे तौबा करना,
यह अनसुनी कहनी मेरी थी।
नारी का सद्यब सम्मान करना,
मेरी यह बातें याद रखना,
यारों उससे तौबा करना,
हमेशा उचित हाथों में जीवन रखना।
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा मोहब्बत करता था
आज तू मोहब्बत को भी तरस जाए, मुझे फर्क नही पड़ता।
एक वक़्त था जब उसके लिए ऑनलाईन आया करता था
नेट स्लो का बहान कर के वो किसी और की शाम बनाया करता था।
आज तू घंटों ऑनलाईन आया कर, मुझे फर्क नहीं पड़ता।
एक वक़्त था जब तेरी तस्वीरों को देख कर ही सोया करता था,
आज नींद ना भी आए तो मझे फर्क नही पड़ता।
एक वक़्त था जब तेरे लिए अपने खुदा से लड़ बैठा था,
आज वो खुदा तुझे मेरे द्वार पर फेक जाए, मुझे फर्क नही पड़ता।
एक वक़्त था जब तुझे खोने से डरता था,
आज तू दस यार भी बना ले मुझे फर्क नही पड़ता।
एक वक़्त था जब तुझ पे विश्वास अटल था,
आज तेरे चरित्र वर्णन मे यह गोरा कागद भी काला हो जाए मुझे फर्क नही
पड़ता।
एक वक़्त था जब तेरे से मेरी सुबह और शाम होती थी,
आज ये सब छीन जाए मुझ से, मुझे फर्क नहीं पड़ता।
एक वक़्त था जब तुझे छु कर निकलने वाले हवा से भी नफरत करता था,
आज तू किसी के साथ भी हमबिस्तर हो जा, मुझे फर्क नहीं पड़ता।
एक वक़्त था जब तेरी तौहीन नहीं सुन सकता था,
आज मेरी कलम तेरी इज्जत तार-तार कर दे मुझे फर्क नही पड़ता।
एक वक़्त था जब तुझे परदे में रखता था,
आज माफ करना, ना भी की तो मुझे फरक नही पड़ता।
आज के कवि
हम कवियों का भी कुछ ईमान होता है,
शब्दों से सब सारेआम होता है।
हर इंसान का कविताओं में जिक्र है,
पर किसी सक्स का नहीं नाम होता है।
कविताओं में अपनी माशूका को बदनाम करके ही,
आजकल यहां कवि महान होता है।
जिसका जीक्र कवि कविता में कर रहा हो,
वो सस्क भी महफ़िल में आम होता है।
इस ज़माने के दीए दर्द से ही,
हर दिन एक नए कवि का जन्म होता है।
मत खेलो इन शब्द बालों से,
इनकी कलम की मार तलवार से ज्यादा असरदार होता है।
जैसे वो दूध के धुले और सब कुसुर तेरा हो,
तेरे दिए जख्म का कुछ इस तरह से गुणगान होता है।
तेरी इज़्ज़त वहीं नीलाम करते है,
जिनका तू कभी कद्रदान होता है।
सुन कर लोग भी खूब तालियां बजाते हैं,
सय्यद उनका भी यही अंजाम होता है।
इसमें गलती कवियों की भी नहीं है,
क्या करें कविता ही हमरा हथियार होता है।
एक गुज़ारिश है इन हुस्न वालों से, जीवन में मत वो मुकाम लाओ,
मत तोड़ो दिल किसी का, दिल में खुदा का निवास होता है।
© Copyright content. All rights reserved by Jigyashu Kumar Gupta
Powered by JR World.
No comments:
Post a Comment